१. रक्षाबंधन : इतिहास
‘पाताळातल्या बळीराजाच्या हाताला लक्ष्मीने राखी बांधून त्याला आपला भाऊ केले आणि नारायणाची मुक्तता केली. तो दिवस श्रावण पौर्णिमेचा होता.’
आ. ‘बारा वर्षे इंद्र आणि दैत्य यांच्यात युद्ध चालले. आपली १२ वर्षे म्हणजे त्यांचे १२ दिवस. इंद्र थकून गेला होता आणि दैत्य वरचढ होत होते. इंद्र त्या युद्धातून स्वतःचे प्राण वाचवून पळून जाण्याच्या सिद्धतेत होता. इंद्राची ही व्यथा ऐकून इंद्राणी गुरूंना शरण गेली. गुरु बृहस्पति ध्यान लावून इंद्राणीला म्हणाले, ‘‘जर तू आपल्या पातिव्रत्य बळाचा उपयोग करून हा संकल्प केलास की, माझे पतीदेव सुरक्षित रहावेत आणि इंद्राच्या उजव्या मनगटावर एक धागा बांधलास, तर इंद्र युद्ध जिंकेल.’’ इंद्र विजयी झाला आणि इंद्राणीचा संकल्प साकार झाला.येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।
अर्थ : ‘जे बारीक रक्षासूत्र महाशक्तीशाली असुरराज बळीला बांधले होते, तेच मी तुम्हाला बांधत आहे. तुमचे रक्षण होवो. हा धागा तुटू नये आणि तुमचे सदैव रक्षण होवो.’
इ. भविष्यपुराणात सांगितल्याप्रमाणे रक्षाबंधन हे मूळचे राजांसाठी होते. राखीची एक नवी पद्धत इतिहासकाळापासून चालू झाली.
२. राखी बांधण्यामागील शास्त्र
३. भावनिक महत्त्व
रक्षाबंधन या दिवशी बहिणीने भावाच्या हाताला राखी बांधायची असते आणि त्यामागे भावाचा उत्कर्ष व्हावा अन् भावाने बहिणीचे संरक्षण करावे, ही भूमिका असते. बहिणीने भावाला राखी बांधण्याहून जास्त महत्त्वाचे आहे, एखाद्या तरुणाने / पुरुषाने एखाद्या तरुणीकडून / स्त्रीकडून राखी बांधून घेणे. त्यामुळे त्यांचा, विशेषतः तरुणांचा आणि पुरुषांचा तरुणीकडे किंवा स्त्रीकडे पाहण्याचा दृष्टीकोन पालटतो.४. राखी बांधणे
तांदूळ, सोने आणि पांढर्या मोहर्या पुरचुंडीत एकत्र बांधल्याने रक्षा अर्थात राखी सिद्ध होते. ती रेशमी दोर्याने बांधली जाते.येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।
अर्थ : महाबली आणि दानवेन्द्र असा जो बलीराजा जिने बद्ध झाला, त्या रक्षेने मी तुलाही बांधते. हे राखी, तू चलित होऊ नकोस.
Raksha Bandhan mahiti |Marathi| | hindi | photo 2020 |
अ. तांदुळाच्या कणांचा समुच्चय राखी म्हणून रेशमी धाग्याने बांधण्याची पद्धत का आहे
‘तांदूळ हे सर्वसमावेशकतेचे प्रतीक, म्हणजेच ते सर्वांना आपल्यात सामावून घेणारे, तसेच ते सर्व लहरींचे उत्तम आदान-प्रदान करणारे आहे. तांदुळाचा समुच्चय पांढर्या वसनात बांधून तो रेशमाच्या धाग्याने शिवरूपी जिवाच्या उजव्या हातात बांधणे, म्हणजे एक प्रकारे सात्त्विक रेशमी बंधन सिद्ध करणे. रेशमी धागा सात्त्विक लहरींचे गतीमान वहन करण्यात अग्रेसर आहे. कृतीच्या स्तरावर प्रत्यक्ष कर्म घडण्यासाठी हे रेशमी बंधन प्रत्यक्ष सिद्ध केले जाते. राखी बांधणार्या जिवातील शक्तीलहरी तांदुळाच्या माध्यमातून शिवरूपी जिवाकडे संक्रमित झाल्याने त्याची सूर्यनाडी कार्यरत होऊन त्यातील शिवतत्त्व जागृत होते. तांदुळाच्या कणांच्या माध्यमातून शिवातील क्रियाशक्ती कार्यरत होऊन वायूमंडलात कार्यलहरींचे गतीमान प्रक्षेपण करून वायूमंडलातील रज-तमकणांचे विघटन करते. अशा रितीने रक्षाबंधनाचा मूळ उद्देश शिव आणि शक्ती यांच्या संयोगाने साध्य करून या दिवसाचा लाभ मिळवणे मानवजातीच्या दृष्टीने जास्त इष्ट ठरते.’
– सूक्ष्म जगतातील ‘एक विद्वान’ (सौ. अंजली गाडगीळ यांच्या माध्यमातून १८.८.२००५, दुपारी १२.३६)आ. भद्राकाळानंतरच राखी बांधणे योग्य !
ज्याप्रमाणे शनीची क्रूर दृष्टी हानी करते, तसेच शनीची बहीण भद्रा हिचा प्रभावही हानीकारक असतो. रावणाने भद्राकाळात शूर्पणखेकडून राखी बांधून घेतली आणि त्याच वर्षी त्याचा त्याच्या कुळासहित नाश झाला. भद्रेच्या कुदृष्टीमुळे कुळाची हानी होण्याची शक्यता असते. त्यामुळे भद्राकाळात राखी बांधून घेऊ नये. (संदर्भ : अज्ञात)
५. प्रार्थना करणे
बहिणीने भावाच्या कल्याणासाठी आणि भावाने बहिणीच्या रक्षणासाठी प्रार्थना करण्याबरोबरच दोघांनीही ‘राष्ट्र आणि धर्म यांच्या रक्षणासाठी आमच्याकडून प्रयत्न होऊ देत’, अशी ईश्वराला प्रार्थना करावी.राखीच्या माध्यमातून होणारे देवतांचे विडंबन रोखा !
रक्षाबंधन
भारत, त्योहारों और मेलों का देश है और विविधता में एकता ही इसकी मूल पहचान है, क्योंकि यहां अलग-अलग धर्म, जाति, लिंग, पंथ, संप्रदाय आदि के लोग मिलजुल कर रहते हैं और सभी अपने-अपने रीति-रिवाज, परंपरा और संस्कृति के हिसाब से अपने त्योहारों को मनाते हैं।
यह त्योहार लोगों के बीच आपसी प्रेम संबंधों को बढ़ाने और रिश्ते को और अधिक मजबूती प्रदान करता है। रक्षाबंधन का त्योहार भी भारत में मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार भाई -बहन के प्यार का प्रतीक है, जिसे मनाने के पीछे कई पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक कथाएं जुड़ी हुईं हैं।
वहीं इस त्योहार के महत्व को आज की युवा पीढ़ी को समझाने और आपसी प्रेम और भाईचारे को बढ़ाने के उद्देश्य से स्कूलों में विद्यार्थियों को इस पर निबंध लिखने के लिए कहा जाता है।
इसलिए आज हम इस आर्टिकल में आपको रक्षाबंधन पर अलग-अलग शब्द सीमा में निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसका इस्तेमाल आप अपनी जरूरत के मुताबिक कर सकते हैं, तो आइए जानते हैं रक्षाबंधन के निबंध (Raksha Bandhan Essay) के बारे में –
राखी बांधणे |
रक्षाबंधन की जानकारी – निबंध – Raksha Bandhan Essay In Hindi
प्रस्तावना-राखी का त्योहार (Rakhi ka Tyohar) हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है, जिसे पूरे भारत में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार बहन और भाई के पवित्र रिश्ते और उनके प्यार का प्रतीक है।
जिसमें बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर उनकी लंबी उम्र और उनकी तरक्की की कामना करती हैं, तो वहीं भाई इस दिन अपने बहन की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं। यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को और अधिक मजबूती प्रदान करता है।
राखी का त्योहार कब मनाया जाता है? – Rakhi or Raksha Bandhan Kab Hai
राखी का यह त्योहार हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक श्रावण मास की शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है। ज्यादातर अगस्त महीने में यह त्योहार पड़ता है। हिन्दू धर्म में श्रावण का महीना काफी शुभ होता है, जिसमें भगवान शिव की पूजा-अर्चना का काफी महत्व है।कैसे मनाते हैं राखी का त्योहार – How To Celebrate Rakhi
रक्षाबंधन का त्योहार (Raksha Bandhan ka Tyohar) भाई-बहन के पवित्र रिश्ते और उनके प्रेम का प्रतीक है। इस त्योहार के दिन बहन अपने भाई की कलाई में रक्षा सूत्र बांधती हैं और अपने भाई की आरती कर उसका मुंह मीठा करवाती है एवं अपने भाई की लंबी उम्र, उन्नति और खुशहाल जीवन की कामना करती है।वहीं इसके बाद भाई अपने बहन को उपहार देता है और अपने बहन की रक्षा करने का संकल्प लेता है। वहीं कई राखी बांधने तक कई भाई-बहन कुछ नहीं खाते-पीते हैं, राखी बांधने के समय तक वे व्रत रखते हैं।
रक्षा सूत्र बांधने के बाद ही भाई-बहन और परिवार के सभी सदस्य मिलकर एक साथ भोजन करते हैं। इस दिन तरह-तरह के पकवान भी बनाए जाते हैं, तो कई लोग रेस्टोरेंट में खाने के लिए भी जाते हैं।
इस त्योहार के दिन नए कपड़े पहनने का भी चलन है। वहीं शादी-शुदा बहनें या फिर जो बहने अपने भाइयों से दूर रहती हैं वो कई दिन पहले से ही इस त्योहार को खास बनाने की तैयारियों में जुट जाती हैं।
बाजारों में भी इस त्योहार की रौनक कई दिनों पहले से ही दिखने लगती हैं। रंग-बिरंगी राखियों से सजी दुकानें, गिफ्ट और मिठाई की दुकानें इस पर्व के दौरान देखते ही बनती है।
जो बहनें राखी के दिन अपने भाईयों के पास नहीं होती हैं, वे पोस्ट के जरिए या फिर ऑनलाइन अपने भाई के पास राखी भेजती हैं। वहीं माॉडर्न टेक्नोलॉजी के इस जमाने में आजकल दूर रह रहे भाई-बहन वीडियो कॉल से माध्यम से एक-दूसरे से बात करते हैं और ऑनलाइन गिफ्ट भेजकर राखी की बधाई देते हैं एवं अपने बचपन की यादें ताजा करते हैं।
रक्षाबंधन के पर्व पर जरूरी नहीं है कि सिर्फ सगे भाई-बहनें ही एक दूसरे को राखी बांधे, बल्कि इस दिन चचेरे भाई-बहन या फिर वो लोग जो किसी अन्य को अपना भाई-बहन के समान मानते हैं, ऐसे लोग भी इस पवित्र त्योहार के मौके पर राखी बांधकर अपने रिश्ते की डोर को मजबूत करते हैं।
उपसंहार
भाई-बहन के प्रेम के पर्व रक्षाबंधन पर हर तरफ प्यार और सदभाव का माहौल देखने को मिलता है। वहीं इस त्योहार के बहाने भाई-बहन एक-दूसरे के और अधिक करीब आ जाते हैं और यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को और अधिक मजबूत करने का पावन पर्व है।
इसके साथ ही इस पर्व पर परिवार के सभी सदस्यों को आपस में समय व्यतीत करने का भी मौका मिलता है।
रक्षाबंधन पर निबंध – Raksha Bandhan Nibandh
प्रस्तावनाहिन्दू धर्म के प्रमुख पर्व रक्षाबंधन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते और अटूट प्रेम का पर्व है। इस दिन हर बहन अपने भाई की कलाई में रक्षासूत्र बांधती है और उसके स्वस्थ जीवन और लंबी उम्र की कामना करती है।
भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है रक्षाबंधन:
जाहिर है कि भाई-बहन के बीच जो प्यार होता है, वो अतुलनीय होता है, भाई-बहन के रिश्ते जैसा दुनिया में कोई और दूजा रिश्ता नहीं होता है। हर भाई-बहन के बीच छोटी-छोटी बातों में कुछ खट्ठी -मीठा नोंकझोंक तो होती रहती है, लेकिन इन तकरारों के बाबजूद भी इस रिश्ते में सबसे ज्यादा प्यार की मिठास घुली रहती है, हर भाई-बहन एक-दूसरे पर अपनी जान छिड़कते हैं।
यह एक ऐसा रिश्ता होता है जिसमें दिन पर दिन प्यार और भी ज्यादा गहराता जाता है। वहीं रक्षाबंधन का पर्व इस रिश्ते को और भी अधिक मजबूती प्रदान करता है।
भाई-बहन का रिश्ता एक दोस्त की तरह होता है, जिसमें अपने मन की बात बेझिझक कही जा सकती है, कुछ बातें ऐसी होती हैं जो माता-पिता से नहीं की जा सकती है, लेकिन भाई-बहनों के साथ शेयर कर मन हल्का हो जाता है। वहीं भाई-बहन एक-दूसरे को बेहद अच्छी तरह समझते हैं और उनकी भावनाओं को जानते हैं।
जिस तरह बड़े भाई अपनी बहन की सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं और उन्हें सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं, उसी तरह बड़ी बहनें भी अपने भाईयों का सही मार्गदर्शन करती हैं और हर परिस्थिति में उनका साथ देने के लिए हमेशा तैयार रहती हैं।
रक्षाबंधन, भाई-बहन के इस पवित्र रिश्ते की डोर को और अधिक मजबूती प्रदान करता है और उनके बीच के प्यार को बढ़ाने का काम करता है। रक्षाबंधन का त्योहार आपसी प्रेम, स्नेह, भाईचारा, सोहार्द, एकजुटता और भरोसे का पावन पर्व है।
रक्षाबंधन का महत्व – Importance Of Raksha Bandhan
रक्षाबंधन का पर्व बेहद खास पर्व है, यह हर भाई-बहन के लिए बेहद महत्वपूर्ण पर्व है। इस पर्व का सभी भाई-बहन पूरे साल भर इंतजार करते हैं। इस त्योहार का महत्व तो शास्त्रों और पुराणों में भी बताया गया है।भाई-बहन के प्रेम के इस पर्व पर सदियों से बहन अपने भाई की रक्षा के लिए उनकी कलाई में राखी बांधती आ रही हैं और भाई रक्षासूत्र के महत्व को समझते हुए अपनी बहन की रक्षा कर रहे हैं और अपने दिए हुए वचन को निभाते आ रहे हैं।
श्रावस मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाए जाने वाला यह पर्व न सिर्फ भाई-बहनों के आपसी प्रेम और स्नेह को बढ़ाता है, बल्कि एक-दूसरे के प्रति अपने कर्तव्यों का बोध करवाता है।
उपसंहार –
रक्षाबंधन का त्योहार आपसी प्रेम और भाईचारे को बढ़ाता है साथ ही एक साथ मिलजुल कर रहने का संदेश देता है। राखी के त्योहार से भाई-बहन के रिश्ते को और अधिक मजबूती मिलती है।
राखी पर निबंध – Rakhi Par Nibandh
प्रस्तावनारक्षाबंधन का त्योहार हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है, जिसे पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। इस मौके पर बहन अपने भाई की कलाई में राखी बांधती है और उसके सुखी जीवन एंव लंबी उम्र की कामना करती है। तो वहीं भाई, इस दिन अपने बहन की रक्षा करने का संकल्प लेता है।
राखी के त्योहार की शुरुआत और इससे जुड़ी पौराणिक-धार्मिक कथाएं – Raksha Bandhan Story
हमारे भारत देश में सावन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का यह पावन त्योहार सदियों से मनाया जा रहा है। इस त्योहार को मनाने के पीछे कई ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक कथा जुड़ी हुईं हैं। जो कि इस प्रकार हैं-श्रीकृष्ण और द्रौपदी से जुड़ी रक्षाबंधन की कथा:
रक्षाबंधन के इस पवित्र त्योहार को मनाने की एक धार्मिक कथा का उल्लेख महाभारत में मिलता है। इस कथा के मुताबिक एक बार जब युधिष्ठर यज्ञ कर रहे थे तभी शिशुपाल द्धारा भगवान श्री कृष्ण को घोर अपमान किया गया, तब श्री कृष्ण ने शिशुपाल को सबक दिखाने के लिए सुदर्शन चक्र से उसका वध करने का निश्चय किया।
वहीं जब भागवन श्री कृष्ण अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध कर रहे थे, तभी गलती से भगवान श्री कृष्ण की उंगली उनके संदुर्शन चक्र में फंस गईं और चोट लगने से खून निकलने लगा, जिसे देख द्रोपदी दौड़ी-दौड़ी श्री कृष्ण के पास पहुंची और अपनी साड़ी का एक टुकड़ा भगवान श्री कृष्ण की उंगली में बांध दिया।
वहीं द्रौपदी के ऐसा करने से भगवान श्री कृष्ण बेहद खुश हुए और इसके बाद उन्होंने सदैव द्रौपदी की रक्षा करने का वचन दिया। फिर इसके बाद जब कौरवों द्धारा भरी सभा में द्रौपदी का चीर-हरण किया जा रहा था, तब भगवान श्री कृष्ण ने राखी की लाज रखी और भाई का फर्ज निभाते हुए अपनी बहन द्रौपदी की रक्षा की।
ऐसा कहा जाता है कि जब द्रोपदी ने भगवान श्री कृष्ण की कलाई में साड़ी का पल्लू बांधा था, उस दिन सावन मास की शुक्ल पूर्णिमा थी। तभी से भाई-बहन के पावन पर्व के रुप में यह त्योहार मनाया जाने लगा।
माता लक्ष्मी ने राजा बली की कलाई पर बांधा रक्षा सूत्र:
रक्षाबंधन को मनाने के पीछे माता लक्ष्मी और राजा बलि से भी एक प्राचीन कथा जुड़ी हुई है। अपने दादा प्रह्लाद की तरह ही राजा बलि भगवान विष्णु का बहुत बड़ा उपासक था।
राजा बलि एक महाप्रतापी, महादानी और अपनी प्रजा को अत्याधिक प्रेम करने वाला राजा था, जो कि असुर कुल में पैदा हुआ था और उसने अपनी शक्तियों से अपने असुर सम्राज्य का विस्तार धरतीलोक से लेकर स्वर्गलोक तक कर लिया था।
वहीं एक बार जब राजा महाबली ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया तब महाबली की परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु एक ब्राह्म्ण का रुप धारण कर उसके पास गए और महादानी राजा बलि से दान में तीन पग भूमि देने के लिए कहा, लेकिन भगवान विष्णु ने अपने दो पग में ही पूरी धरती और आकाश माप लिया।
जिसके बाद राजा बलि समझ गए कि भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं इसलिए तीसरे पग के लिए राजा बलि ने भगवान का पग अपने सिर पर रखवा लिया और प्रभु से अपने साथ पाताल में चलकर रहने के लिए कहा, जिसके बाद भगवान ने अपने भक्त की बात मान ली और वे बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए।
जिससे माता लक्ष्मी चिंतित हो गईं और फिर उन्होंने अपने प्रभु विष्णु जी को पाताल लोक से बाहर लाने के लिए एक गरीब महिला का वेष धारण किया और सम्राट बलि के पास पहुंची और रक्षासूत्र बांधकर उन्हें अपना भाई बना लिया, जब महाबलि ने कहा कि मेरे पास उपहार देने के लिए कुछ नहीं है तब माता लक्ष्मी ने अपना असली रुप धारण कर लिया और अपने प्रभु विष्णु को बैकुंठ वापस भेजने के लिए कहा, जिसके बाद महाबलि अपनी बहन को मना नहीं कर पाएं।
वहीं जाते वक्त विष्णु जी ने राजा बलि को वचन दिया कि वह साल में 4 महीने पाताल में ही निवास करेंगे, आपको बता दें कि यह 4 महीने चतुर्मास के रुप में जाने जाते हैं, जो देवश्यनी एकादशी से लेकर देवउठानी एकदशी तक होते हैं।
इस तरह तभी ससे भाई को बांधे जाने वाले इस रक्षा सूत्र का काफी महत्व माने जाने लगा और रक्षाबंधन के इस त्योहार को पूरे देश में मनाया जाने लगा।
उपसंहार
रक्षाबंधन का पावन पर्व पूरे देश में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार को अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। यह त्योहार भाई बहन के रिश्ते को कायम रखने के लिए मनाया जाता है। इस त्योहार का महत्व शास्त्रों और पुराणों में भी बताया गया है।
Raksha Bandhan mahiti |Marathi| | hindi | photo 2020 |
राखी पर निबंध – Rakhi Essay In Hindi
प्रस्तावना-रक्षाबंधन का पर्व श्रावण मास की शुक्ल मास की पूर्णिमा को पूरे देश में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार भाई – बहन के पवित्र रिश्ते और प्रेम का प्रतीक है। वहीं इतिहास में भी रक्षासूत्र के महत्व को समझते हुए सिंकदर और हुमायूं जैसे बड़े शासकों ने भी राखी की लाज राखी थी।
इतिहास में रक्षाबंधन का महत्व
भाई-बहन के प्रेम के पर्व रक्षाबंधन को मनाने के पीछे कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं तो जुड़ी हुई हैं, इसके साथ ही इतिहास में कई ऐसी घटनाएं हुईं जिससे इस पर्व का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है। इतिहास से जुड़ी घटनाएं इस प्रकार हैं –
सिंकदर की पत्नी ने राजा पुरु को बनाया अपना भाई:
इतिहासकारों के मुताबिक सिकंदर (अलेक्जेंडर द ग्रेट) ने जब भारत पर आक्रमण किया था, तब उनकी सुरक्षा को लेकर उनकी पत्नी ने हिन्दू राजा पुरु (पोरस) को राखी बांधकर उन्हें अपना भाई बनाया था और उपहार के तौर पर युद्ध के दौरान अपने पति सिकंदर को नहीं मारने का वचन लिया था, जिसके बाद राजा पोरस ने अपनी बहन की राखी का मर्यादा रखी और बहन को दिए गए वचन का मान रखते हुए सिकंदर को हाथ भी नहीं लगाया और उसे जीवनदान दे दिया था।
मेवाड़ की महारानी कर्णावती ने जब हुमायूं को बनाया अपना भाई:
मेवाड़ की महारानी कर्णावती और मुगल शासक हुमायूं से भी रक्षाबंधन के पर्व की ऐतिहासिक कहानी जुड़ी हुई है। इतिहासकारों के मुताबिक रानी कर्णावती ने बहादुर शाह से अपने सम्राज्य को बचाने के लिए मुगल शासक हुंमायूं को अपना भाई बनाया था।
रानी कर्णावती ने हुंमायूं को रक्षा सूत्र भेजकर उनके राज्य को बचाने और उनकी रक्षा के लिए आग्रह किया था, जिसके बाद हुंमायूं ने मुस्लिम होते हुए भी इस रक्षासूत्र का मान रखा था और रानी कर्णावती के प्राणों की रक्षा की थी। जिसके बाद से रक्षाबंधन के पर्व को मनाया जाने लगा।
रक्षाबंधन पर सैनिकों को राखी और इससे जुड़ी धार्मिक कथा:
रक्षाबंधन के पर्व पर हमारे देश की महिलाएं अपने सैनिकों को देश की रक्षा करने और उनकी हिफाजत करने के लिए शुक्रिया अदा करती हैं और उन्हें अपना भाई मानकर राखी भेजती हैं।
वहीं रक्षाबंधन पर सैनिकों को बांधी जाने वाली राखी के पीछे एक अन्य धार्मिक कथा भी जुड़ी हुई है जिसके मुताबिक एक बार जब महाभारत में युद्ध के दौरान जब युधिष्ठर संकट में फंस गए थे, तब भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठर को अपने सैनिकों को रक्षासूत्र बांधने के लिए कहा जिसके बाद न सिर्फ उनकी सारी मुश्किलें खत्म हो गईं बल्कि वे विजयी भी हुए।
ऐसा कहा जाता है कि युधिष्ठर ने यह रक्षा सूत्र श्रावण मास की पूर्णिमा को बांधा था इसलिए तब से इस दिन देश के सैनिकों को रक्षासूत्र बांधने की परंपरा चली आ रही है।
उपसंहार
रक्षाबंधन के पर्व पर बहन द्धारा भाई की कलाई पर बांधी जाने वाली राखी अथवा रक्षासूत्र का काफी महत्व होता है,जिसे बांधकर हर बहन अपने भाई की लंबी उम्र और उसके सफल होने की दुआ करती है तो हर भाई अपने बहन की रक्षा करने का संकल्प लेता है।
वहीं त्योहार आपस में प्रेम और भाईचारा बढ़ाता है, साथ ही इस तरह के त्योहारों में हमारी भारतीय संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।
नारळी पौर्णिमा :
सण, उत्सव व व्रते यांच्यामागचे शास्त्र लक्षात घेऊन श्रद्धापूर्वक साजरे करण्यात आपलेच कल्याण असते. वास्तविक आपल्या जीवनात नेहमीच संयम पाहिजे, पण तो पाळला जात नाही; म्हणून निदान सण, धार्मिक उत्सव व व्रतांच्या दिवशी तरी तो पाळला जावा, म्हणजे हळूहळू नेहमीच संयमित जीवन जगता येईल. कर्मकांडाच्या दृष्टीने सण, धार्मिक उत्सव व व्रते इतकी महत्त्वाची आहेत की, वर्षातील जवळजवळ ७५ टक्के तिथींना यांपैकी काही ना काही असतेच. यात श्रावण महिन्याला सण, धार्मिक उत्सव व व्रतांचा महिनाच म्हटले जाते. या महिन्यात येणार्या सण, धार्मिक उत्सव व व्रतांमध्ये नारळी पौर्णिमा हा एक सण साजरा केला जातो.नारळी पौर्णिमेला करण्यात येणारे वरूणदेवतेचे पूजन
पावसाळा संपत आला की समुद्र शांत होतो, तेव्हा नारळी पौर्णिमा साजरी करतात. नागपंचमी नंतर श्रावणात येणारा हा दुसरा सण आहे. श्रावणी पौर्णिमेलाच नारळी पौर्णिमा असेही म्हणतात. या दिवशी कोळी बांधव व समुद्रकिनारी रहाणारे लोक वरुणदेवतेप्रीत्यर्थ समुद्राची पूजा करून त्याला नारळ अर्पण करतात. या दिवशी अर्पण करावयाचे नारळ हे फळ शुभसूचक आहे, तसेच ते सर्जनशक्तीचेही प्रतीक मानलेले आहे. नदीपेक्षा संगम व संगमापेक्षा सागर जास्त पवित्र आहे. `सागरे सर्व तीर्थानि' असे वचन आहे. सागराची पूजा म्हणजेच वरुणदेवतेची पूजा. जहाजांनी मालाची वाहतूक करतांना वरुणदेव प्रसन्न असल्यास तो साहाय्य करतो.नारळी पौर्णिमेच्या दिवशी समुद्राची पूजा करून नारळ अर्पण का करावा ?
(नारळी पौर्णिमेच्या दिवशी आपतत्त्वात्मक यमलहरींचे आधिक्य असल्याने व नारळाच्या पाण्यातील तेजतत्त्व यमलहरींना ताब्यात ठेवत असल्याने जलावर ताबा मिळवणार्या सागररूपी वरुणदेवतेला नारळ अर्पण करतात.) या दिवशी ब्रह्मांडात आपतत्त्वात्मक यमलहरींचे आधिक्य असते. या लहरी ब्रह्मांडात भोवर्याप्रमाणे गतिमान असतात. वरूणदेवता ही जलावर ताबा मिळवणारी व त्याचे संयमन करणारी असल्याने या दिवशी सागररूपी वरुणदेवतेला आवाहन करून तिला नारळ अर्पण करून ब्रह्मांडात कार्यरत असणार्या यमलहरींना ताब्यात ठेवण्यासाठी प्रार्थना केली जाते. नारळातील पाण्यात तेजतत्त्वाचे प्रमाण अधिक असते. नारळातील पाणी हे आपतत्त्वाचे प्रमाण जास्त असणार्या यमलहरी ग्रहण करण्यात अतिशय संवेदनशील असते. वरुणदेवतेला आवाहन करतांना तिच्या कृपाशीर्वादाने यमलहरी नारळाच्या पाण्याकडे आकृष्ट होतात. नारळाच्या पाण्यातील तेजतत्त्व या यमलहरींना ताब्यात ठेवून त्यांतील रज-तम कणांचे विघटन करून त्यांना सागरात विलीन करते; म्हणून या दिवशी वायुमंडलातील यमलहरींचे नारळाच्या माध्यमातून उच्चाटन करून सागररूपी वरुणदेवतेच्या चरणी त्यांचे समर्पण करण्याला महत्त्व आहे. यामुळे वायुमंडलाची शुद्धी होते. यमलहरींच्या वातावरणातील अधिक्यामुळे शरीरात अधोगामी वहाणारे वायु कार्यरत् झाल्याने पाताळातून प्रक्षेपित होणार्या त्रासदायक लहरी पटकन जिवाच्या तळपायाकडे आकृष्ट झाल्याने त्याला त्रास होण्याची शक्यता जास्त असते.समुद्राला नारळ `अर्पण' कसा कराल ?
नारळी पौर्णिमेच्या दिवशी समुद्राला नारळ अर्पण करतांना तो पाण्यात फेकू नका, तर हळुवारपणे सोडा ! नारळी पौर्णिमेच्या दिवशी वरुणदेवतेला आवाहन करून सागराला नारळ अर्पण करतात. ते करतांना काही जण नारळ पाण्यात फेकतात. त्यामुळे नारळ अर्पण करण्यामागील अपेक्षित लाभ मिळत नाही; म्हणून तो भावपूर्णपणे हळुवार पाण्यात सोडावा.रक्षाबंधनाचे महत्व आणि माहिती
हिंदू संस्कृतीनुसार श्रावण पौर्णिमेला रक्षाबंधनाचा सण साजरा केला जातो. उत्तर भारतात हा सण राखी म्हणुन प्रसिद्ध आहे. या दिवशी बहीण आपल्या भावाच्या उजव्या हाताच्या मनगटावर राखी बांधून भावास दिर्घ आयुष्य व सुख लाभो मिळो म्हणुन प्रार्थना करतात. पुरातन काळात, जेव्हा स्त्री स्वतःस असुरक्षीत जाणते, तेव्हा ती अशा व्यक्तीस राखी बांधून भाऊ मानते, जो तिची रक्षा करील.रक्षाबंधनचा सणाप्रमाणे दक्षिण भारतात कार्तिक महिन्यात कार्तिकेय सण असतो. या दिवशी बहीण आपल्या भावास जेवण देऊन त्याच्या दिर्घआयुष्यासाठी प्रार्थना करते व भाऊ तिचे रक्षण करण्याचे वचन देतो. रक्षाबंधन हे आपल्या व इतरांच्या जीवनामध्ये पवित्रता व मांगल्य निर्माण करण्याचे बंधन आहे.
इंद्राच्या राणीने आपल्या मनगटावर एक धागा बांधला होता. ज्याच्या सामर्थ्याने वज्रानुसार राक्षसाचा पराभव केला. तेव्हापासून त्याची स्मृती म्हणून मनगटावर राखी बांधण्याची पध्दत आहे. तसेच ऐतिहासिक काळात चित्तोडच्या राणी कर्मवतीने हुमाँयू बादशहाला राखी पाठवली व हुमाँयू बादशहाने पण आपल्या या बहिणीचे परकीय आक्रमणापासून संरक्षण केले.
राखी बांधण्याचा अर्थ आपण त्या व्यक्तीच्या प्रेमरूपी बंधनात स्वत:ला वाहून घेऊन तिच्या रक्षणाची जबाबदारी स्वकारतो. राखी बंधनाच्या या सणातून मित्रत्व, स्नेह व परस्पर प्रेम वृध्दिंगत करण्याची प्रथा अस्तित्वात आली आहे.
राजपूत स्त्रिया आपल्या शत्रूंच्या हातात राखी बांधून पुढे होणारा भयंकर संहार टाळीत असत व एकप्रकारे राखीचा उपयोग अहिंसेसाठी करीत असत. राखी पौर्णिमेच्या बऱ्याच अख्यायिका आहेत परंतू त्या माहित करून घेण्यापेक्षा आपण येथे फक्त सणांच्या हेतूला, उद्देशालाच महत्व देणार आहोत.
आपल्या संस्कृतीत स्त्रीला देवी मानले आहे. अशी ही देवतुल्य स्त्री भावाला राखी बांधण्यापूर्वी त्याच्या कपाळावर टिळा लावते. हा टिळा फक्त मस्तकाच्या आदराचा नसून भावाच्या मस्तकातील सद्विचार वं सदबुद्धी जागृत राहण्यासाठीची पूजा आहे. सामान्य डोळ्यांनी जे पाहू शकत नाही ते सर्व विकार, भोग, लोभ, मत्सर, वासना, द्वेष,राग इत्यादींकडे भावाने आपल्या य तिसऱ्या डोळ्याने पहावे य हेतूने बहिण भावाला टिळा लावून त्रिलोचन बनविते. इतका त्या टिळयाचा खोल अर्थ आहे.
राखीचा धागा हा देखील नुसताच सुताचा दोरा नसून ते एक शील, स्नेह, पवित्रतेचे रक्षण करणारे, सतत संयमी ठेवणारे पुर्षार्थाचे पवित्र बंधन आहे. ह्या एवढयाशा धाग्याने कित्येक मने जुळून येतात. त्यांना भावनांचा ओलावा मिळतो वं मन प्रफुल्लीत होते.
एकमेकांना जोडणारा असा हा सण इतर कोणत्याही धर्मात संस्कृतीत नाही. सामाजिक ऐक्याची भावना जागृत ठेवण्यासाठी अशा प्रकारचे सण खूप महत्वाचे ठरतात. रक्ताच्या नात्याव्यतिरिक्त आपल्या मनाप्रमाणे नाती जोडण्यास ह्या सणामुळे समाजास वाव मिळतो. ज्या समाजात अशा प्रकारची एकरूपता, ऐक्य असते असा समाज सामर्थ्यशाली बनतो हाच या राखी पौर्णिमेचा संदेश आहे.हल्लीच्या धकाधकीच्या काळात लहानपणी चिंचा, बोरांवरून ते अगदी आईच्या बाजूला कोण झोपणार यावरून भांडणारे ताई-दादा आता परस्परांना ई-पत्र, फोन किंवा चॅटद्वारे भेटण्याचा व राखी पौर्णिमा एकत्र साजरा करण्याचा आनंद उपभोगतात.
द्रौपदीने आपल्या मानलेल्या भावाला (कृष्णाला) बांधलेली जरतारी शेल्याची चिंधी, गरीब बहिणीने भावाच्या हातात बांधलेला धागा किंवा शाळकरी ताईने तयार केलेली राखी, राजपूत रमणीने बाजूच्या राजाला पाठवलेले राखीचे ताट, श्रीमंत बहिणीने भावाला बांधलेली सोन्याची किंवा चांदीची राखी काय किंवा आज इंटरनेटच्या माध्यमातून बहिणीने भावाला पाठवलेली ई-शुभेच्छापत्रसहित राखी काय या सर्वांमागे भावना एकच आहे ती म्हणजे भावाबहिणींचे परस्परांवरील प्रेम.
स्त्री कितीही मोठी, मिळवती झाली तरी तिच्या रक्षणाची जबाबदारी तिच्या भावावरच आहे हेच ती यातून त्याला सुचवू इच्छिते. यात तिचा दुबळेपणा नसून भावाच्या कर्तृत्वावरचा विश्वास दिसून येतो.रक्ताचे नाते असणारे भाऊ बहिण असोत किंवा मानेलेले असो, पण या नात्यामागची भावना पवित्र व खरी आहे. यात कुठेही फसवणूक नाही. त्या नात्याप्रती कृतज्ञता व्यक्त करण्याचा दिवस म्हणजे राखी पौर्णिमा. त्यामुळेच तर भाऊ नसणारी स्त्री चंद्राला आपला भाऊ मानते व त्याला ओवाळते. अन् प्रत्येक आई आपल्या मुलाला चंदामामा म्हणूनच चांदोबाची ओळख करून देते.
तूच आमचा त्राता, रक्षणकर्त्ता म्हणून देवालाही त्या दिवशी राखी वाहतात आणि उपयोगातल्या सगळ्या वस्तूंना देवराख्या बांधण्याची प्रथाही आढळते. आमच्या लहानपणी सकाळी अंघोळ करून आम्ही आमच्या उपाध्यायांपुढे उभे राहायचो अन् ते घरातल्या प्रत्येकाला मंत्र म्हणून हातात राखी बांधायचे. तेव्हा काही कळायचे नाही. पण आता वाटतंय की ते इतर सर्व व्याधींपासून आमचे रक्षण व्हावे या हेतूने हे अभिमंत्रीत सुरक्षाकवच हातात बांधत असावेत (हल्लीतर प्रत्येक तीर्थक्षेत्री हातात बांधायचे दोरे मिळतात.)
असा हा दिवस अगदी लहानग्यांपासून ते वृद्धापर्यंत सर्वच जण आनंदाने साजरा करतात. हल्ली तर घरात एकच मुलगा/मुलगी असतांना ह्या राखीच्या निमित्ताने दोन परिवार एकमेकांच्या आणखीनच जवळ येत आहेत हे काय कमी आहे?आजही उत्तर-भारतात नोकर मालकाला राखी बांधतात व गरीब लोक धनवंतांना! यामागेही श्रेष्ठ व ज्येष्ठ लोकांनी व या सारख्या लोकांपासूनही रक्षणाची जबाबदारी आणि आपल्या कुटुंबीयांची जबाबदारी तुमच्यावरच आह हे ही सूचित होते.
रेशमी धाग्याला प्रेमाचा रंग …. रक्षाबंधन
घराच्या गच्चीत रूसून बसलेल्या आपल्या लहान बहिणीची समजूत घालण्यासाठी सर्वांत आधी जात असेल तर तो तिचा भाऊ! शाळेतून आपल्या मोठ्या ताईला आणण्यासाठी जाणार्या लहान भावाचा कोमल हात तिला संरक्षण देतो. अशा या बहिण-भावाचा रक्षाबंधनाचा सण त्यांच्या जीवनात रेशमी धाग्याला प्रेमाचा रंग देऊन जातो. लहान भावाच्या झालेल्या चुका स्वत:वर ओढवून घेणारी ताई आई-बाबाकडून मिळणारा ‘प्रसाद’ वाचविते. तर आपल्या ताईचे आभार मानण्यासाठी लहान भाऊ तिला आवडणारी वस्तू भेट देतो.शाळेच्या मुख्याध्यापिका पहिल्या इयत्तेत झोपलेल्या लहानग्याला घेऊन जायला सांगतात तेव्हा त्याची ताई शांत निजलेल्या आपल्या भावाला हळूवार आपल्या वर्गात घेऊन जाते आणि त्याला मांडीवर झोपवून फळ्यावरील लिहिलेले आपल्या वहीत उतरवून घेत असते. लहान श्रुती रडतच आपल्या मोठ्या भावाच्या वर्गात गेली व तिला चिडवणार्या तिच्या वर्गातील मुलांची नावे सांगायला लागली. तिचे डोळे पुसत मधल्या सुटीत त्यांना चांगला मार देऊ सांगताच छोट्या ताईचे रडणे एकदम बंद झाले व ती पुन्हा हसत खेळत आपल्या वर्गात जाऊन बसली. तिच्या मते मोठ्या भावाने दिलेले आश्वासन म्हणजे काम फत्ते असंच ती समजते. शाळेत जाणारी लहान बहिण हसण्या खिदळण्यात केव्हा मोठी होते कळतच नाही. मग तिला आपल्या बाईकवर घेऊन कॉलेजात सोडणारा तिचा भाऊ तिचा ‘बॉडीगार्ड’च बनूनच जातो. तिच्या आवडीनिवडींची काळजी घेतो तर तिला संकटामधून आधार देतो.
ताईचे लग्न होऊन तिला निरोप देण्याचा क्षण येतो, तेव्हा तिचा भाऊ पाहुण्यांच्या सरबराईत मग्न असतो. ताई विरहाने धाय मोकलून रडत असताना भावाला लहानपण आठवते. सरबराईत गुंतलेले हात घेऊन तोही अश्रूभरल्या डोळ्यांनी बहिणीला भेटतो. भाऊ व बहिणीचे नाते रेशमी धाग्यासारखे नाजूक असते. रक्षाबंधन या सणाला बहिण भावाच्या हातावर राखी बांधते व भाऊ तिला प्रेमाची भेटवस्तू देतो. एवढेच नाही तर तिच्या संरक्षणासाठी खंबीर आहे याची ग्वाहीही देतो.
आपल्या देशात प्रेम, आपुलकी अजुनही कायम असल्याने रक्षाबंधन या सणाचे महत्त्व आजही कायम आहे.
रक्षाबंधन (राखी)
श्रावण पौर्णिमेला येणार्या रक्षाबंधन या सणाच्या दिवशी बहीण आपल्या भावाचे औक्षण करून त्याला प्रेमाचे प्रतीक म्हणून राखी बांधते. भाऊ आपल्या बहिणीला ओवाळणी म्हणून भेटवस्तू देऊन तिला आशीर्वाद देतो. सहस्रो वर्षांपासून चालत आलेल्या रक्षाबंधन या सणामागील इतिहास, शास्त्र, राखी सिद्ध करण्याची पद्धत आणि या सणाचे महत्त्व या लेखातून विशद केले आह
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