आम जानकारी बैंगन की खेती से दो महीने में करें हजारों की कमाई
कृषि
आम जानकारी
बैंगन (सोलेनम मैनलजेना) सोलेनैसी जाति की फसल है, जो कि मूल रूप में भारत की फसल मानी जाती है और यह फसल एशियाई देशों में सब्जी के तौर पर उगाई जाती है। इसके बिना यह फसल मिस्र, फरांस, इटली और अमेरिका में भी उगाई जाती है। बैंगन की फसल बाकी फसलों से ज्यादा सख्त होती है। इसके सख्त होने के कारण इसे सूखा और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। यह विटामिन और खनिजों का अच्छा स्रोत है। इसकी खेती सारा साल की जा सकती है। चीन के बाद भारत दूसरा सबसे अधिक बैंगन उगाने वाला देश है। भारत में बैंगन उगाने वाले मुख्य राज्य पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार, महांराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश।)
बैंगन की फसल सख्त होने के कारण इसे अलग अलग तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। यह एक लंबे समय की फसल है, इसलिए अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ रेतली दोमट मिट्टी उचित होती है और अच्छी पैदावार देती है। अगेती फसल के लिए हल्की मिट्टी और अधिक पैदावार के लिए चिकनी और नमी या गारे वाली मिट्टी उचित होती है। फसल की वृद्धि के लिए 5.5-6.6 पी एच होनी चाहिए।
बैंगन की बहुत सारी किस्में होती है। में कुछ विशेष किस्मों के बारे में यहाँ पर बताउगा जो hiybird है। और अच्छा उत्पादन देने वाली होती है।
- पूसा hibird 5
- इसमे पौधा बड़ा और अच्छी शाखाओं युक्त होता है। ये फसल 80 से 90 दिनों आ जाती है। प्रति हेक्टेयर 450 से 600 क्विंटल होती है।
- पूसा hibird 6
- गोल फल लगते है। 85 से 90 दिनों की औसत प्रति हेक्टेयर 500 से 600 क्विंटल
- पूसा hibird 9
- 85 से 90 दिनों में फल लगते है। औसत 400 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
इसके अलावा पूसा क्रांति,पूसा भैरव,पूसा बिंदु,पूसा उत्तम ,पूसा उपकार,पूसा अंकुर, जो की प्रति हेक्टेयर 200 से 400 क्विंटल तक उत्पादन देते है।
कैसे करे नर्सरी तैयार
नर्सरी तैयार करने के लिए खेत की मिट्टी को अच्छे से देसी खाद् (गोबर) को मिट्टी की सतह पर बिखेर कर फिर जुताई करे। (अपने खेत की मिट्टी का परीक्षण अवश्य करावे ताकि उचित मात्रा में खाद् दे सके) जुताई होने के बाद उठी हुई क्यारियां बना ले फिर एक हेक्टेयर के लिए hibird बीज 400 ग्राम तक काफी होता है। बनी हुई क्यारियों में 1 से.मी. की गहराई में 6 से 7 सेमी. की दूरी पर बीजो को डाल दे। फिर उसे पर्याप्त मात्रा में पानी देते रहे ।
कब करे बुआई
- उसे तो इस फसल को पुरे वर्ष में सभी ऋतुओ में लगाया जा सकता है। लेकिन में आपको माह से बता देता है। नर्सरी मई जून में करने पर बुआई 1 या डेढ़ माह में यानि जून या जुलाई तक कर सकते है।
- जो नर्सरी नवम्बर में लगाते है उसे जनवरी में शीत लहर और पाले का प्रकोप से बचा कर लगा सकते है जो नर्सरी फरवरी और मार्च में लगाते है उसे मार्च लास्ट और अप्रैल तक की जा सकती है।
कैसे करे खेत तैयार
- नर्सरी में पौधे तैयार होने के बाद दूसरा महत्वपूर्ण कार्य होता है खेत को तैयार करना । मिट्टी परीक्षण करने के बाद खेत में एक हेक्टेयर के लिए 4 से 5 ट्रॉली पक्का हुआ गोबर का खाद् बिखेर दे।
- उसके बाद 2 बेग यूरिया 3 बेग सिंगल सुपर फास्फेट और पोटेशियम सल्फ़ेट की मात्रा ले कर जुताई करे। फिर खेत में 70 सेमी. की दूरी पर क्यारियां बना लीजिए अब पोधों को 60×60 सेमी. या 60×50 में पोधों की रोपाई करे।
बैंगन की फसल में लगने वाले रोग
- नर्सरी में लगने वाले रोग
- आद्रगलन(डम्पिंगऑफ़)यह एक कवक है जो पोधों को बहार से निकलने से पूर्व ही ख़त्म कर देता है। और बहार निकलने के बाद भी पोधों को सूखा देता है।
- रोपाई के बाद लगने वाले रोग
- झुलसा रोग,पत्ता धब्बा रोग,अंग मारी रोग,मलानी रोग,छोटी पत्ती रोग,सुतकर्मि रोग,बैंगन की फसलो में लगते है। जिनका समय समय पर उपचार आवश्यक रूप से कर
- हानिकारक कीट और रोकथाम
फल और शाख का कीट : यह बैंगन की फसल का मुख्य और खतरनाक कीट है। शुरूआत में इसकी छोटी गुलाबी सुंडियां पौधे की गोभ में छेद करके अंदर से तंतू खाती हैं और बाद में फल पर हमला करती हैं। प्रभावित फलों के ऊपर बड़े छेद नज़र आते हैं और खाने योग्य नहीं होते हैं।
प्रभावित फल हर सप्ताह तोड़ कर नष्ट कर दें। नर्सरी लगाने से 1 महीने बाद ट्राइज़ोफॉस 20 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी और 50 ग्राम नीम एक्सट्रैक्ट 50 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें। 10-15 दिनों के फासले पर यह स्प्रे दोबारा करें। फूल निकलने के समय कोराजैन 18.5 प्रतिशत एस सी 5 मि.ली. + टीपॉल 5 मि.ली. का घोल 12 लीटर पानी में मिलाकर 20 दिनों के फासले पर दो बार स्प्रे करें।
शुरूआती हमले में 5 प्रतिशत नीम एक्सट्रैक्ट 50 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें। ज्यादा हमला दिखने पर 25 प्रतिशत साइपरमैथरिन 2.4 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। कीटों की गिनती अधिक हो जाने पर स्पाइनोसैड 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। फल पकने के बाद ट्राइज़ोफॉस या किसी और कीटनाशक की स्प्रे ना करें।
पत्तों का छोटापन: यह बीमारी पत्तों के टिड्डे द्वारा फैलती है। इस बीमारी से प्रभावित इंकाटल पतले रह जाते हैं। छोटी पत्तियां भी हरी पड़ जाती हैं। इन्द्र फल फल पैदा नहीं करते।
इस बीमारी की रोकथाम के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें। नर्सरी में फक्टर 10 प्रतिशत (20 ग्राम, 3x1 मीटर चौड़े बैड के लिए) का प्रयोग करें। बिजाई के समय दो पंक्तियों के बीच में फ़ोर्ट डालें। यदि शुरूआती समय पर हमला दिखे तो अनंत पौधे उखाड़कर बाहर निकाल दें। फसल में दयमाथोएट या ऑक्सीडैमीटन मिथाइल 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। इस बीमारी का मुख्य कारण तेला है। तेले के हमले को ओवर करने के लिए थायमैठोक्सम 25 प्रतिशत डब्लू जी 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे।