भारत का शासन ब्रिटेन की संसद को दे दिया गया। अब भारत के शासन को ब्रिटेन की ओर से “भारत का राज्य सचिव” को चलाना था। डायरेक्टरों की सभा और नियंत्रण बोर्ड को भंग कर उनके समस्त अधिकारों भारत सचिव को दे दिये गये। इस तरह इस एक्ट ने भारत में द्वैध शासन प्रणाली को समाप्त कर दिया।
1858 ई. का भारत सरकार अधिनियम
अगस्त 1858 ई. में ब्रिटिश संसद ने एक अधिनियम पारित कर भारत में कंपनी के शासन को समाप्त कर दिया| इस अधिनियम द्वारा भारत के शासन का नियंत्रण ब्रिटिश सम्राट को सौंप दिया गया| इस समय विक्टोरिया ब्रिटेन की महारानी थीं| ब्रिटेन का सर्वोच्च निकाय ब्रिटिश संसद थी जिसके प्रति ब्रिटेन की सरकार उत्तरदायी थी| ब्रिटेन की सरकार द्वारा किये जाने वाले सभी कार्य सम्राट के नाम पर किये जाते थे| ब्रिटेन की सरकार के एक मंत्री ,जिसे भारत सचिव कहा जाता था ,को भारतीय सरकार का उत्तरदायित्व सौंपा गया | चूँकि ब्रिटेन की सरकार संसद के प्रति उत्तरदायी थी अतः भारत के लिए भी सर्वोच्च निकाय ब्रिटेन की संसद ही थी| इस अधिनियम द्वारा भारत के गवर्नर जनरल को वायसराय , जिसका अर्थ था-सम्राट का प्रतिनिधि ,कहा जाने लगा| महारानी विक्टोरिया द्वारा एक घोषणा की गयी जिसे लार्ड कैनिंग द्वारा 1 नवम्बर,1858 ई. इलाहाबाद के दरबार में पढ़ा गया|
• उद्घोषणा में सभी भारतीय राजाओं के अधिकारों के सम्मान वादा किया गया और भारत में ब्रिटिश क्षेत्रों के विस्तार पर रोक लगा दी गयी|
• इसमें लोगों के प्राचीन अधिकारों व परम्पराओं आदि के सम्मान और न्याय,सद्भाव व धार्मिक सहिष्णुता की नीति का अनुसरण करने का वादा किया गया |
• इसमें घोषित किया गया कि प्रत्येक व्यक्ति ,जाति और धर्म के भेदभाव के बिना,केवल अपनी योग्यता और शिक्षा के आधार पर प्रशासनिक सेवाओं में प्रवेश पाने का हक़दार होगा|
• घोषणा में एक तरफ राजाओं को सुरक्षा का आश्वासन दिया गया तो दूसरी तरफ मध्य वर्ग से भी विकास हेतु अवसरों को उपलब्ध कराने का वादा किया|
लेकिन धीरे धीरे यह साबित हो गया कि जिस अवसर की समानता की बात उद्घोषणा में की गयी उसे लागू नहीं किया गया| भारत की प्राचीन परम्पराओं के प्रति सम्मान के नाम पर ब्रिटिशों ने सामाजिक बुराइयों को संरक्षण देने की नीति अपना ली | अतः विदेशी शासकों द्वारा सामाजिक सुधारों की ओर बहुत ही कम ध्यान दिया गया और जब भी भारतीय नेताओं ने इन सुधारों की मांग की तो उनका विरोध किया गया |
1858 ई. के बाद भारतीयों के हितों को पुनः ब्रिटेन के हितों के अधीनस्थ बना दिया गया |ब्रिटेन व अन्य साम्राज्यवादी ताकतों के संघर्ष में भारत का उपयोग ब्रिटेन के आर्थिक हितों की पूर्ति के माध्यम के रूप में किया गया|भारत के संसाधनों का प्रयोग विश्व के अन्य भागों में ब्रिटिश साम्राज्य के हितों की पूर्ति और अन्य देशों के विरुद्ध चलाये गए महंगे युद्धों की पूर्ति हेतु किया गया|
डिजरैली का विधेयक
26 मार्च, 1858 को 'हाउस ऑफ कॉमन्स' के नेता डिजरैली ने भारत का शासन सम्राट को हस्तान्तरित करने के लिए लोकसभा में एक विधेयक प्रस्तुत किया। उसने प्रस्तावित किया कि भारत के शासन की जिम्मेदारी सम्राट के एक मंत्री के हाथों में सौप दी जाये, जो 18 सदस्यों की एक कौंसिल की सहायता से शासन का संचाल करें। आधे सदस्य सम्राट द्वारा मनोनीत हों और आधे सदस्य इंग्लैण्ड की विभिन्न व्यापारिक संस्थाओं द्वारा चुने जायें। डिजरैली का यह बिल उपहास का विषय बन गया और स्वतः ही समाप्त हो गया। अन्त में 30 अप्रैल, 1858 को कॉमन्स सभा में स्टैनले द्वारा प्रस्तुत 14 प्रस्तावों को पास किया गया। इन प्रस्तावों के आधार पर 1858 ई. का विधेयक तैयार किया गया, जिसे अन्त में संसद के विधेयक के रूप में पास कर दिया। 2 अगस्त, 1858 ई. को एक अधिनियम को सम्राज्ञी की अनुमति प्राप्त हो गई। इस प्रकार 1858 ई. के अधिनियम के फलस्वरूप ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन का अन्त हुआ और साथ ही शासन के उन दोषों का भी, जिसके लिए कम्पनी बुरी तरह बदनाम थी। 1 दिसम्बर, 1858 ई. को संचालक मण्डल की अन्तिम सभा हुई और बड़े ही हृदयस्पर्शी शब्दों में बहुमूल्य तथा विशाल भारतीय साम्राज्य उपहार के रूप में ब्रिटिश साम्राज्ञी को अर्पित कर दिया गया।[1]
निष्कर्ष
- महारानी विक्टोरिया द्वारा की गयी उद्घोषणा 1857 ई. के विद्रोह का परिणाम थी और इस उद्घोषणा में यह विश्वास दिलाया गया कि भारतीय लोगों के साथ जाति,धर्म,रंग और प्रजाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा |इसमें भारतीय राजाओं को भी यह विश्वास दिलाया गया की उनकी प्रतिष्ठा,अधिकार और गरिमा का सम्मान किया जायेगा और उनके अधीनस्थ क्षेत्रों पर किसी तरह का अतिक्रमण नहीं किया जायेगा|
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन समाप्त कर शासन की ज़िम्मेदारी ब्रिटिश क्राउन को सौंप दी गयी।
- भारत का गवर्नर-जनरल अब भारत का वायसराय कहा जाने लगा था।
- 'बोर्ड ऑफ़ डाइरेक्टर्स' एवं 'बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल' के समस्त अधिकार 'भारत सचिव' को सौंप दिये गये। भारत सचिव ब्रिटिश मंत्रिमण्डल का एक सदस्य होता था, जिसकी सहायता के लिए 15 सदस्यीय 'भारतीय परिषद' का गठन किया गया था, जिसमें 7 सदस्यों की नियुक्ति 'कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स' एवं शेष 8 की नियुक्ति ब्रिटिश सरकार करती थी। इन सदस्यों में आधे से अधिक के लिए यह शर्त थी कि वे भारत में कम से कम 10 वर्ष तक रह चुके हों।
- भारत सचिव व उसकी कौंसिल का खर्च भारतीय राजकोष से दिया जायगा। संभावित जनपद सेवा में नियुक्तियाँ खुली प्रतियोगिता के द्वारा की जाने लगीं, जिसके लिए राज्य सचिव ने जनपद आयुक्तों की सहायता से निगम बनाए।
- इस अधिनियम के लागू होने के बाद 1784 ई. के 'पिट एक्ट' द्वारा स्थापित द्वैध शासन पद्धति पूरी तरह समाप्त हो गयी। देशों व राजाओं का क्राउन से प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित हो गया और डलहौज़ी की 'राज्य हड़प नीति' निष्प्रभावी हो गयी।